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Kal Bhairav Ashtak कालभैरव स्तोत्रम् सम्पूर्ण कालभैरवाष्टकं और हिंदी अर्थ

  कालभैरवाष्टकं / सम्पूर्ण कालभैरव अष्टक हिंदी अर्थ सहित: भैरव का अर्थ है जो देखने में भयंकर हो या जो भय से रक्षा करता हो इन्हें क्षेत्रपाल भी कहते है| इनको दुष्टों से रक्षा करने वाला और भक्तो की रक्षा करने वाला देवता माना गया है| इन्होने अपने हाथो में अस्त्रों जैसे डंडा , त्रिशूल , डमरू , चंवर , ब्रह्मा का पांचवा सिर, खप्पर और तलवार ले रखी है और आभूषण के रूप में साँप लपेट रखे है जो देखने मे ही डरावने लगते है| कालभैरव को शिव भगवान का पांचवा अवतार माना गया है| लिंग पुराण के अनुसार कालभैरव शिव भगवान का रौद्र रूप है जिसने ब्रह्मा जी का पांचवा सर धड़ से अलग कर दिया था| ब्रहमहत्या का पाप लगने की वजहसे वो सर उनसे चिपक गया और वो 12 वर्षो तक अलग अलग तीर्थो पर उसकी शांति के लिए घूमते रहे | जब वो काशी पहुचें तो वो सर अपने आप अलग हो गया| काशी में उस जगह को कपालमोचन तीर्थ कहते है जहाँ जो भी कोई जाता है ब्रहमहत्या जैसे ग्रह दोष भी दूर हो जाते है | ग्रहदोष के निवारण के लिए कालभैरव की पूजा की जाती है |   कालभैरव अष्टक: कालभैरव अष्टक की रचना आदिशंकराचार्य ने कालभैरव को प्रसन्न करने के ल

Devi Arundhati and Vasistha story wife of sage Vasistha

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  अरुंधती-वसिष्ठ तारा / वसिष्ठ की पत्नी अरुंधती सप्तऋषियों में से ऋषि वसिष्ठ की पत्नी थी, उन्हें सात ऋषियों के समान दर्जा दिया जाता है और उनके साथ पूजा की जाती है | वैदिक और पौराणिक साहित्य में उन्हें शुद्धता, वैवाहिक आनंद और पत्नी भक्ति का प्रतीक माना जाता है | संस्कृत और हिंदी की कविताओ में उनके चरित्र को बेदाग , प्रेरक और अनुकरण के योग्य बताया गया है | अरुंधती के जन्म का उल्लेख शिव पुराण और भागवत पुराण में मिलता है| शिव पुराण के अनुसार पिछले जन्म में उनका नाम संध्या था| ब्रह्मा ने संध्या और मन्मथा को अपनी मनसपुत्रियों के रूप में पैदा किया था | ब्रह्मा और प्रजापति जो उसके पिता और भाई थे उसकी सुन्दरता पर मोहित हो जाते है और वह भी उनकी तरफ आकर्षित हो जाती है जिससे उसको बाद में पछतावा हो जाता है| अपनी इस गलती के पश्चाताप के लिए वह चंद्रभागा पर्वत पर हजारो सालो तक तपस्या करती है| ब्रह्मा को उसपर दया आ जाती है और वो ऋषि वसिष्ठ को उसकी मदद के लिए भेजते है तब ऋषि एक ब्राह्मण के वेश में उसके पास जाकर उसको भगवान विष्णु की तपस्या करने की विधि बताते है| भगवान विष्णु उसकी तपस्या से प्रस

Sage Vasisth ऋषि वसिष्ठ

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  महर्षि वसिष्ठ   Sage Vasisth temple in Manali महर्षि वसिष्ठ :- जब भी हम किसी भी हिंदू ग्रन्थो को चाहे वो वेद हो या पुराण को पढ़ते है तो महर्षि वसिष्ठ का वर्णन हर जगह मिलता है| गोत्र परंपरा में वसिष्ठ गोत्र को सर्वश्रेष्ठ गोत्र माना गया है | ज्योतिषी में किसी भी वर्ण के आदमी का गोत्र वसिष्ठ हो सकता है ऐसी मान्यता है| ऋषि वसिष्ठ उन सप्तऋषियों मेसे एक है जिनको ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान एक साथ हुआ था| जब भी ऋषि वसिष्ठ का नाम आता है तो उनके साथ उनकी पत्नी अरुंधती का नाम जरुर लिया जाता है | ऋषि वसिष्ठ को अरुन्धतिनाथ भी कहते है | सोरमंडल में सप्तऋषि तारामंडल का आखिरी तारा ऋषि वसिष्ठ को माना गया है और इसी के साथ एक तारा जो बहुत धुंधला दिखाई देता है वह अरुंधती तारा है | दक्षिण भारत में शादी के बाद दम्पति को वसिष्ठ अरुंधती तारा दिखाने की परंपरा है क्योंकि अरुंधती को एक आदर्श पत्नी माना गया है जिसका वर्णन हिंदू ग्रंथो में वसिष्ठ अरुंधती की कथा के रूप में मिलता है| अगर सोरमंडल में भी देखा जाए तो सभी तारे अपनी जगह पर स्थित है और धरती घुमती है लेकिन यही दो ऐसे तारे है जो एक-दुसरे के चारो तरफ

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