Sage Vasisth ऋषि वसिष्ठ

 

महर्षि वसिष्ठ 




Sage Vasisth temple in Manali




महर्षि वसिष्ठ :-

जब भी हम किसी भी हिंदू ग्रन्थो को चाहे वो वेद हो या पुराण को पढ़ते है तो महर्षि वसिष्ठ का वर्णन हर जगह मिलता है| गोत्र परंपरा में वसिष्ठ गोत्र को सर्वश्रेष्ठ गोत्र माना गया है| ज्योतिषी में किसी भी वर्ण के आदमी का गोत्र वसिष्ठ हो सकता है ऐसी मान्यता है| ऋषि वसिष्ठ उन सप्तऋषियों मेसे एक है जिनको ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान एक साथ हुआ था| जब भी ऋषि वसिष्ठ का नाम आता है तो उनके साथ उनकी पत्नी अरुंधती का नाम जरुर लिया जाता है| ऋषि वसिष्ठ को अरुन्धतिनाथ भी कहते है| सोरमंडल में सप्तऋषि तारामंडल का आखिरी तारा ऋषि वसिष्ठ को माना गया है और इसी के साथ एक तारा जो बहुत धुंधला दिखाई देता है वह अरुंधती तारा है| दक्षिण भारत में शादी के बाद दम्पति को वसिष्ठ अरुंधती तारा दिखाने की परंपरा है क्योंकि अरुंधती को एक आदर्श पत्नी माना गया है जिसका वर्णन हिंदू ग्रंथो में वसिष्ठ अरुंधती की कथा के रूप में मिलता है| अगर सोरमंडल में भी देखा जाए तो सभी तारे अपनी जगह पर स्थित है और धरती घुमती है लेकिन यही दो ऐसे तारे है जो एक-दुसरे के चारो तरफ लगातार चक्कर लगाते दिखाई देते है|

 

वसिष्ठ महर्षि का जन्म

वसिष्ठ का मतलब होता है सर्वोतम या सबसे अच्छा| पुराणों के अनुसार वसिष्ठ ऋषि का तीन बार जन्म हुआ था|

पहले जन्म में वसिष्ठ ब्रह्मा के मानसपुत्र है| ब्रह्मा के मन से मरीचि, नेत्र से अत्री, मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वसिष्ठ, अंगूठे से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनकादि ऋषि, शरीर से मनु और सतरूपा, और ध्यान से चित्रगुप्त पैदा हुए थे| ऋषि वसिष्ठ की पत्नी अरुंधती है जिसे ऊर्जा भी कहा जाता है का पिछले जन्म में नाम संध्या था उसने घोर तपस्या करके और खुदको अग्नि कुंड में समर्पित करके अगले जन्म में ऋषि वसिष्ठ से विवाह किया था| इनके पुत्रो के नाम शक्ति, चित्रकेतु, पुरोसिस, विरसा, मित्रा, उल्बना, वसुभ्र्द्याना, दयुमत थे| सती के पिता दक्ष के यज्ञ में जब बहुत सारे देवता जल गये थे तो उनमें ऋषि वसिष्ठ और अरुंधती भी शामिल थे जो बाद में ब्रह्मा के आशीर्वाद से दो तारे बन गये|

 

दुसरे जन्म में भी वसिष्ठ ऋषि ब्रह्मा के अग्नि कुंड से अवतरित हुए| उनकी पत्नी का नाम अकस्माला था जो अरुंधती का पुनर्जन्म था इस जन्म में इक्ष्वाकु वंश के सम्राट निमी के श्राप से उनकी मृत्यु होती है| कहानी इस प्रकार है कि एक बार राजा निमी ने अपने यहाँ एक यज्ञ का आयोजन करवाया और ऋषि वसिष्ठ को आने का निमंत्रण भेजा| लेकिन उस समय ऋषि ने आने से मना कर दिया क्योंकि उस समय वो इन्द्र के यज्ञ का आयोजन कर रहे थे तो उन्होंने इंद्र के यज्ञ समाप्त होने के बाद आने की कहकर राजा को खाली हाथ भेज दिया| वसिष्ठ के ना आ पाने के कारण राजा निमी ने ऋषि गौतम को बुलाकर यज्ञ संपन्न करवा लिया| जब ऋषि इंद्र का यज्ञ समाप्त करके निमी के पास आये तो राजा अपने महल में विश्राम कर रहे थे| गौतम के हाथो यज्ञ सम्पन्न होने की बात जानकर वसिष्ठ ऋषि गुस्सा हो जाते है और राजा निमी को श्राप देते हुए कहते है की हे निमी ! तुमने अपने गुरु का अपमान किया इसीलिए मे तुम्हे श्राप देता हूँ की तुम्हारा शरीर तुम्हारी आत्मा से अभी अलग हो जाए| राजा निमी ऋषि से श्राप को वापस लेने की बहुत विनती करते है लेकिन ऋषि का गुस्सा शांत नही होता|  बिना किसी गलती के मिले हुए श्राप की वजहसे निमी को भी गुस्सा आ जाता है और वह ऋषि को भी श्राप देते है की जैसे आपने मुझे बिना किसी गलती क श्राप दिया वैसे ही आपका शरीर भी आत्मा से अलग हो जाए| राजा के मुख से ऐसा श्राप सुनकर वसिष्ठ ऋषि विचलित हो जाते है और ब्रह्मा के पास भाग कर जाते है| तब ब्रह्मा कहते है की श्राप की वजहसे ऐसा होकर रहेगा लेकिन तुम्हारा जन्म फिरसे होगा और तुम मित्रावरुण और उर्वशी से पैदा होओगे|

 

इस तरह तीसरे जन्म में उनके पिता मित्रावरुण और माता उर्वशी थे| ऋषि वसिष्ठ और ऋषि अगस्त्य दोनों को भाई बताया गया है जो एक कुम्भ या मटके से पैदा हुए थे जिसमे मित्रावरुण का वीर्य था| एक बार मित्रावरुण यज्ञ कर रहे थे तब उन्होंने उर्वशी को देखा तो वो उसपर मोहित हो गये तब उन्होंने अपना वीर्य एक कुम्भ में रख दिया जिससे कुछ समय बाद ऋषि वसिष्ठ और ऋषि अगस्त्य पैदा हुए|

 

योग वसिष्ठ ग्रन्थ में ऋषि वसिष्ठ भगवान राम के साथ लक्ष्मण, भरत और शत्रुधन के गुरु है| ऋग्वेद के सबसे पुराने सातवे मंडल के रचयिता भी वसिष्ठ ही है जिसमे 100 से ज्यादा ऋचाये है| इन्हें राम का गुरु कुलगुरु बताया गया है| इनके पास कामधेनु और नंदिनी नाम की गाय थी जो बहुत ही मायावी थी|

एक बार अठवसुओ ने इस गाय को ऋषि की आज्ञा के बिना आश्रम से चुरा लिया था तब ऋषि ने इनको चिरकाल तक मनुष्य योनि में पैदा होने और वहाँ के दुःख झेलने का श्राप दिया था यही वसु फिर महाराज शांतनु और देवी गंगा के पुत्रो के रूप में एक एक कर पैदा हुए और माता गंगा उनको श्राप मुक्त करने के लिए गंगा में प्रवाहित करती गयी लेकिन आखिरी वसु को महाराज शांतनु द्वारा रोके जाने की वजहसे प्रवाहित नही कर पायी यही आखिरी वसु भीष्म पितामह थे जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था और जिन्होंने पृथ्वीलोक पर रहते हुए यहाँ के सभी कष्ट भोगे और अपने पिता को दिए वचन के वजहसे आजीवन ब्रह्मचारी रहे|

 

एक अन्य कथा में ऋषि विश्वामित्र इनके आश्रम आये थे और कामधेनु गाय की शक्तियों को देखकर अपने साथ ले जाने के लिए ऋषि वसिष्ठ से युद्ध किया था जिसमे वसिष्ठ विजयी हुए तभी से इन दोनों की आपस में शत्रुता बन गयी| इसी शत्रुता की वजहसे विश्वामित्र ने इनके 100 पुत्रो की हत्या की थी लेकिन फिरभी ऋषि वसिष्ठ ने उनको माफ़ कर दिया था| ऋषि वसिष्ठ और विश्वामित्र की शत्रुता का वर्णन बहुत सारी कथाओ में मिलता है|

 

भगवान राम के गुरु योग वसिष्ठ

 योग वसिष्ठ ग्रन्थ ऋषि वसिष्ठ राम के गुरु थे| उनको राजा दशरथ के राजकुल गुरु होने का दर्जा प्राप्त था| योग वसिष्ठ ग्रन्थ में 6 प्रकरण है| इसमें 29000 श्लोक है| महाभारत के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा हिंदू धर्मग्रन्थ है| भगवान राम की जीवनी पर आधारित ना होकर यह ग्रन्थ अध्यात्मिक उपदेश देता अधिक प्रतीत होता है|

 

ऋषि वसिष्ठ की रचनाए

ऋषि वसिष्ठ ने बहुत से ग्रंथो की रचना की है विष्णु पुराण के वक्ता और श्रोता ऋषि पराशर और ऋषि मैत्रेय है लेकिन इस पुराण को ऋषि वसिष्ठ और पुलत्स्य ऋषि पर ही आधारित बताया गया है|

ऋग्वेद के 7वे मंडल की रचना, योग वसिष्ठ, वसिष्ठ धर्मसूत्र (1038 सूत्र), वसिष्ठ धर्मसंहिता, वसिष्ठ पुराण, अग्निपुराण और धनुर्वेद की रचना ऋषि वसिष्ठ ने ही की थी|


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