कालिया नाग और भगवान श्रीकृष्ण कथा ( एक नई सोच ) / कालिया नाग मर्दन Krishan Leela

 

कालिया नाग और भगवान श्रीकृष्ण कथा / कालिया नाग मर्दन :-


वेदों में वर्णित श्लोको का ज्ञान जो आम लोगों की समझ से परे थे उसको समझाने के लिए महर्षि वेद व्यास जी ने पुराणों की रचना की और अलग अलग कथाओ के माध्यम से वेदों का ज्ञान जन जन तक पहुचाया| ऐसी एक घटना है भगवान श्रीकृष्ण और कालिया नाग के बीच के युद्ध की है जिसमे भगवान विषेले 1000 मुखो वाले कालिया नाग से सर पर सवार होकर उसका मर्दन करते है और उसको कालिंदी(यमुना) जैसी पवित्र नदी को छोड़ने पर विवश कर देते है|

 

स्वभाव से तो कालिया था तो साँप ही इसमें उसकी भी कोई गलती नही थी क्योंकि प्रकृति ने उसे ऐसा ही बनाया है उसका काम, स्वभाव ही लोगों को डसना और जहर उगलना है जैसे हमारे आस पास लोग होते है जिनका स्वभाव ही ऐसा होता है हम चाहे लाख कोशिश करले लेकिन उनके स्वभाव को बदल नही सकते| अब अगर वो कालिया नाग हमारे मन और बुद्धि को लगातार क्षति पहुचा रहा है तो जरूरी हो जाता है कि उसकी विवशता को समझते हुए दया भाव के साथ उसका मर्दन किया जाए और ऐसा रास्ता निकाला जाए जो दोनों के लिए हितकारी हो|  

 

कालिया नाग कौन है?

 

कश्यप ऋषि की 21 पत्निया थी जिनमे से 13 दक्ष प्रजापति की बेटियों थी| दक्ष की पुत्री कद्रू से शक्तिशाली नागो का जन्म हुआ जिनमे से एक कालिया नाग थे इनके 1000 सर बताए गये है| दक्ष प्रजापति की अन्य बेटी विनिथा से गरुड़ का जन्म हुआ| कद्रू और विनिथा ने एक बार शर्त लगाई और विनिथा उसमे छले जाने के कारण हार गयी और उसको कद्रू की दासी बनना इससे गरुड़ और नागो की आपस में बहुत अधिक शत्रुता थी|

 

कालिया नाग यमुना में क्यों रहता था?

सभी नाग सागर में रहते थे लेकिन गरुड़ के हमले से घबराकर सब वहां से भाग गये और इसी वजहसे कालिया नाग को वह जगह छोड़कर कालिंदी(यमुना) नदी में आकर बसना पड़ा क्योंकि गरुड़ को ऋषि सौभरि की तपस्या भंग करने की वजहसे से श्राप मिला था की वो वहा नही आ सकता और अगर वो वहां आया तो उसके शरीर के 1000 टुकड़े हो जायंगे| यही श्राप कालिया की जान के लिए वरदान साबित हुआ और वह वहाँ रहने लगा| लेकिन ऐसे विषेले साँप के रहने से यमुना का पानी, वनस्पति, पेड़-पौधे सब भयंकर विष के प्रभाव से जलने लगे और हवा भी विषेली हो गयी|

 

 

श्री कृष्ण और कालिया युद्ध:-

 

एक बार बाल कृष्ण गायों, सखाओं और गोपियों के साथ यमुना नदी के किनारे घूम रहे थे| उसका विषेला जल पी लेने से सभी गाये मूर्छित हो जाती है| उस कुंड में भयंकर कालिया को देखकर वो समझ गये और उसका अंत करने के लिए उस कुंड में कूद गये| कृष्णजी ने कालिया को चुनौती देते हुए अपनी भुजाओ को ठोंका तो कालिया क्रोध से आंखे लाल करते हुए अपनी सभी पत्नियों और रिश्तेदारों के साथ वहाँ आ गया और कृष्ण को कुंडली मारकर जकड़ लिया और उसको डसने लगा| श्रीकृष्ण की ऐसी दशा देखकर सभी गोपिया और सखा विलाप करने लगे और नन्द और यशोदा को बुला लाये| अपने पुत्र की ऐसी दशा देखकर किसी भी माँ का मन विचलित हो सकता है और वो मूर्छित हो गयी| सभी गोपिया रुदन करते हुए कहने लगी कि जैसे सूर्य के बिना दिन, चद्रमा के बिना रात, सांड के बिना गोउ का कोई अस्तित्व नही होता ऐसे ही हम इस व्रज में रहकर क्या करेंगी और वो भी उस कुंड में कूदने लगी| बलराम और नन्द के रोकने पर वो इस मुश्किल समय में वो खुद रोक पायी और वहाँ रुदन करती रही| कृष्ण उन सभी के ऐसे प्रेम को देखकर मुस्कराने लगे और अपनी लीला से उस दुष्ट कालिया जिसका शस्त्र उसके दांत और विष ही था का दमन करने के लिए खुद को उसके चंगुल से छुड़ा लिया| श्रीकृष्ण उसके मुख पर सवार हो गये वह जिस भी मुखसे उनपर प्रहार करता उसी के ऊपर चढकर वेगपूर्वक नाचने लगे मानो कोई परिस्थियों की परवाह किये बिना पूरी तत्परता से अपना कार्य  कर रहा हो| श्री कृष्ण चंद्रजी की भ्रान्ति(भ्रम), रेचक तथा दंडपात नाम की नृत्य सम्बन्धी गतिया करने लगे जिससे वह कालिया नाग थकने लगा और उसके मुख से खून बहने लगा| अपने पति की ऐसी हालत देखकर नागपत्निया अपने पति के अपराध की क्षमा मांगने लगी और प्राणदान देने की भिक्षा मांगने लगी| कालिया नाग भी अपने प्राणों की भिक्षा मांगते हुए कहने लगा कि आपसे ब्रह्मा, रूद्र, चन्द्र, इंद्र, मरूदगण, अश्विनीकुमार, वसुगण और आदित्य आदि सभी उत्पन्न हुए है उन आपकी मै किस प्रकार स्तुति कर सकता हू|

 

कालिया भगवान कृष्ण से कहता है की हे केशव ! मेरा जन्म तो सर्प जाति में हुआ है इसका स्वभाव ही क्रूर होता है इसमें मेरी कोई गलती नही है| इस पुरे संसार की रचना और उत्पति के कारण आप ही है और आप ही सभी जीवो का स्वरूप, जाति और स्वभाव निर्धारित करते है| अपने स्वरूप के अनुसार आचरण करने पर भी आपने मुझे दंड दिया तो आपके हाथो से मुझे मिला दंड भी मेरे लिया वरदान है इसिलए केशव मुझे प्राणदान दे और अब आगे मुझे कैसे रहना है उसका मार्गदर्शन दे|

 

कालिया की ऐसी बात सुनकर श्री कृष्ण ने उसे शीघ्र ही अपने परिवार के स्थ यमुना छोडकर समुन्द्र में जाने की आज्ञा दी और उसको कहा की उसके मष्तिष्क पर बने मेरे चरण चिन्हों को देखकर गरुड़( भगवान विष्णु की सवारी) अब तुमपर आक्रमण नही करेगा और तुम वहाँ रह सकते हो| ऐसा सुनकर कालिया नाग अपने सेवको, बंधुओ, पुत्रो और पत्नियों के साथ समुन्द्र में चला जाता है|   

 

कालिया नाग के चले जाने पर सभी गोपीगण प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण का गुणगान करते हुए व्रज वापस चले जाते है और यमुना का पानी फिरसे पवित्र और पीने योग्य हो जाता है|

 

स्वभाव ऐसी ही प्रवृति होती है जो कभी नही बदलती बहुत बार हमारे आस पास घर में, कार्य क्षेत्र में ऐसे ही लोग होते या हमारा खुद का स्वभाव भी ऐसा होता है की हम चाहकर भी उसे बदल नही सकते और हमे वह सही ही लगता है| कालिया नाग ऐसा ही होता है अपने स्वभाव और प्रवृति से मजबूर जैसे भगवान ने उसके स्वभाव को जानकर उसका मर्दन किया और बाद में दया भावना से उसको प्राणदान देकर वरदान दिया वैसे ही हमे भी अपने अंदर और आस पास के ऐसे लोगों को दया भावना से पेश आना चाहिए क्योंकि जो भी घटित होता है वो ना चाहते हुए विवशता वश हो रहा है|


कालिया नाग आज भी जीवित है या नही?

ये एक बहुत ही पेचीदा प्रश्न है हिंदू धर्म में ऐसे बहुत सी किवदंतिया है कि बहुत से अच्छे और बुरे लोग आज भी जीवित है| कहा जाता है की कालिया नाग भी अभी तक जीवित है वैसे तो उसको आजतक किसी ने देखा नही है पर शायद अपने अंदर बैठे जहर उगलने वाले कालिया नाग को जरुर पहचान कर हम उसका मर्दन कर सकते है नही तो ये ऐसे ही क्षति करेगा और सदा हमारे मन मस्तिष्क में जीवित रहेगा| जैसे भगवान विष्णु ने अपने अवतारों से मानव जीवन का उद्धार किया वैसे ही वे हमे भी मार्गदर्शन दे|

 

 

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