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योगिनी एकादशी 2023 योगिनी एकादशी व्रत का महत्व और इसकी कथा
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योगिनी एकादशी हिंदू कलेंडर में ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहा जाता है| हिंदू कलेंडर में दो पक्षों (शुक्ल और कृष्ण) जो 15 दिन के होते है मिलकर एक महिना या माह बनाते है इस तरह एक माह में दो ग्यारहवी तिथि हो जाती है एक कृष्ण पक्ष की और एक शुक्ल पक्ष की| साल में 24 एकादशी होती है और उनके नाम अलग अलग है और उसी अनुसार इसके पूज्य देवता भी बदलते रहते है | इस दिन चंद्रमा हमे अपने पूर्ण स्वरूप से 3/4 घटा हुआ या बढ़ा हुआ दिखाई देता है| हिंदू धर्म में इस दिन व्रत या उपवास करने का बहुत अधिक महत्व है| इस दिन सात्विक भोजन खासकर फलाहार लिया जाता है और जागरण किया जाता है | व्रत करने से हमारे हमारे शरीर का पाचन तंत्र तो दुरस्त होता ही है साथ जैसे की उपवास का मतलब होता है ‘समीप बैठना ’ हम अपने अपने आप को उस परमपिता के ज्यादा नजदीक पाते है | इस दिन किये हुए व्रत से हमारे द्वारा हुए जाने अनजाने पापो से हमे मुक्ति मिलती है| योगिनी एकादशी वैसे तो तभी एकादशियो का अपना अलग महत्व है लेकिन आज हम जिस एकादशी के बारे में बताने जा रहे है वो योगिनी एकादशी है इस दिन श्रीहरि भगवान की पूजा की जाती है| योगिनी
श्री रुद्राष्टकम स्तोत्रम / रुद्रा सूक्त / शिव स्तोत्र/ तुलसीदास रचित शिव स्तोत्र ( नमामीशमीशान निर्वाणरूपम )
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श्री रुद्राष्टकम स्तोत्रम / रुद्रा सूक्त / शिव स्तोत्र श्री रुद्राष्टकम स्तोत्र तुलसीदास द्वारा भगवान शिव की स्तुति में रचित किया गया है इसका वर्णन रामचरितमानस के उत्तरकांड में मिलता है | संसार के समस्त जन्म दुखो से मुक्ति पाने के लिए इसका पाठन करना चाहिए | भगवान शिव की सहस्त्रनामावली में रूद्र को भगवान शिव का स्वरूप बताया गया है| रूद्र का मतलब है जो ‘सबसे शक्तिशाली और पराक्रमी ’ , ‘समस्याओ को जड़ से मिटाने वाला ’ सबसे गंभीर या गर्जना करने वाला ’ | शिव भगवान का शांत रूप है वहीं रूद्र भगवान शिव का क्रूर रूप है जो मनुष्यों के फायदे के लिए संहार लेकर आता है क्योंकि जब कोई पुरानी चीज़ जड़ से खत्म होती है तभी नई चीज़ का जन्म होता है | यह हमारे अंदर किसी भी मोह का त्याग करने का प्रतीक है | यह सही और गलत निर्णय लेने की क्षमता को दर्शाता है| रूद्र भगवान अन्तरिक्ष में स्थित वो बिंदु है जिसने स्वर्ग और नर्क दोनों का अनुभव किया है या हम कह सकते है की यह ऐसे व्यक्ति का रूप है जिसने दोनों पक्षों (सही और गलत) को जिया हो| यह समुन्द्र के बीच में एक लाइटहाउस की तरह है जो भटके/ जीवन से निर
महिषासुरमर्दिनी श्लोक / महिसासुरमर्दिनी श्लोक हिंदी अर्थ सहित / अयि गिरी नन्दिनी
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महिषासुरमर्दिनी श्लोक हिंदी अर्थ सहित और इसके वाचन के लाभ महिषासुर मर्दिनी श्लोक देवी पार्वती के दुर्गा अवतार को समर्पित है इसमें देवी पार्वती के द्वारा महिषासुर नामक राक्षस का मर्दन करने के कारण उनकी स्तुति की गयी है| यह का 21 श्लोको का संग्रह है जिसमे देवी दुर्गा ने जिन असुरो को मारा था उनका वर्णन है| इसकी रचना आदिगुरू शंकराचार्यजी ने की थी | महिषासुर को वरदान मिला था कि देवता और दानवो में उसे कोई पराजित नही कर सकता था उसने देवतओं के साथ युद्ध में देवताओ के साथ साथ त्रिदेवो को भी पराजित कर दिया था| तब सभी देवतओं और त्रिदेवो ने मिलकर एक ऐसी स्त्री का निर्माण किया जो अत्यंत शक्तिशाली हो और जिसमे सभी देवतओं की शक्तिया समाहित हो इस तरह दुर्गा का जन्म हुआ| देवी दुर्गा अपनी दस भुजाओ में सभी देवो के दिए अस्त्र लिए हुए है जिसमे भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिवजी का त्रिशूल, ब्रह्माजी का कमल इंद्र का वज्र आदि शामिल है | देवी दुर्गा ऐसी शक्तिशाली स्त्री है जिसमे सभी भगवानो के तेज और शक्तियों को सहन करने की ताकत है जो किसी भी असुर को धराशायी कर सकती है | महिषासुर मर्दिन
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महिषासुरमर्दिनी श्लोक हिंदी अर्थ सहित और इसके वाचन के लाभ महिषासुर मर्दिनी श्लोक देवी पार्वती के दुर्गा अवतार को समर्पित है इसमें देवी पार्वती के द्वारा महिषासुर नामक राक्षस का मर्दन करने के कारण उनकी स्तुति की गयी है| यह का 21 श्लोको का संग्रह है जिसमे देवी दुर्गा ने जिन असुरो को मारा था उनका वर्णन है| इसकी रचना आदिगुरू शंकराचार्यजी ने की थी | महिषासुर को वरदान मिला था कि देवता और दानवो में उसे कोई पराजित नही कर सकता था उसने देवतओं के साथ युद्ध में देवताओ के साथ साथ त्रिदेवो को भी पराजित कर दिया था| तब सभी देवतओं और त्रिदेवो ने मिलकर एक ऐसी स्त्री का निर्माण किया जो अत्यंत शक्तिशाली हो और जिसमे सभी देवतओं की शक्तिया समाहित हो इस तरह दुर्गा का जन्म हुआ| देवी दुर्गा अपनी दस भुजाओ में सभी देवो के दिए अस्त्र लिए हुए है जिसमे भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिवजी का त्रिशूल, ब्रह्माजी का कमल इंद्र का वज्र आदि शामिल है | देवी दुर्गा ऐसी शक्तिशाली स्त्री है जिसमे सभी भगवानो के तेज और शक्तियों को सहन करने की ताकत है जो किसी भी असुर को धराशायी कर सकती है | महिषासुर मर्दिन
ऋषि याज्ञवल्क्य - मैत्री संवाद बृहदअरण्यक उपनिषद् ( आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः )
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महर्षि याज्ञवल्क्य मै त्री संवाद बृहदअरण्यक उपनिषद् :- मैत्री वैदिक काल की महान विदुषी जिसने आत्मा और ब्रह्माण्ड के एक होने को लेकर संवाद उपनिषद में मिलता है की अद्वैत दर्शन शास्त्र का मूल स्तम्भ है | मैत्री को प्राचीन संस्कृत साहित्य में ब्रह्मवादिनी ( जिसको वेदों का ज्ञान हो ) बताया गया है | मैत्री स्त्री शिक्षा के महत्व के रूप मे एक मिशाल है जिसने गृहस्थ जीवन जीने के साथ साथ अध्यात्मिक ज्ञान को भी प्राप्त किया और आजीवन अध्यनन मनन में लीन रही | बृहदअरण्यक उपनिषद् में इनको महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी बताया गया है वही महाभारत में इनको आजीवन ब्रह्मचारिणी बताया गया है जिन्होंने जनक को अद्वैत दर्शन के बारे में बताया था| बृहदअरण्यक उपनिषद् में मैत्री का वर्णन :- ऋषि याज्ञवल्क्य का वर्णन बृहदअरण्यक उपनिषद् में कई प्रसंगों में मिलता है उनका गगरी और मैत्री के स्थ हुआ संवाद काफी दिलचस्प है जिसमे आत्मा और ब्रह्माण्ड को जानने का वर्णन है | ऋषि याज्ञवल्क्य सुलभ मैत्री ( ऋषि मैत्री की पुत्री ) और कात्यायनी ( ऋषि भारद्वाज की पुत्री ) ऋषि याज्ञवल्क्य की दो पत्निया थी| मै
कालिया नाग और भगवान श्रीकृष्ण कथा ( एक नई सोच ) / कालिया नाग मर्दन Krishan Leela
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कालिया नाग और भगवान श्रीकृष्ण कथा / कालिया नाग मर्दन :- वेदों में वर्णित श्लोको का ज्ञान जो आम लोगों की समझ से परे थे उसको समझाने के लिए महर्षि वेद व्यास जी ने पुराणों की रचना की और अलग अलग कथाओ के माध्यम से वेदों का ज्ञान जन जन तक पहुचाया| ऐसी एक घटना है भगवान श्रीकृष्ण और कालिया नाग के बीच के युद्ध की है जिसमे भगवान विषेले 1000 मुखो वाले कालिया नाग से सर पर सवार होकर उसका मर्दन करते है और उसको कालिंदी(यमुना) जैसी पवित्र नदी को छोड़ने पर विवश कर देते है | स्वभाव से तो कालिया था तो साँप ही इसमें उसकी भी कोई गलती नही थी क्योंकि प्रकृति ने उसे ऐसा ही बनाया है उसका काम, स्वभाव ही लोगों को डसना और जहर उगलना है जैसे हमारे आस पास लोग होते है जिनका स्वभाव ही ऐसा होता है हम चाहे लाख कोशिश करले लेकिन उनके स्वभाव को बदल नही सकते| अब अगर वो कालिया नाग हमारे मन और बुद्धि को लगातार क्षति पहुचा रहा है तो जरूरी हो जाता है कि उसकी विवशता को समझते हुए दया भाव के साथ उसका मर्दन किया जाए और ऐसा रास्ता निकाला जाए जो दोनों के लिए हितकारी हो | कालिया नाग कौन है ? कश्यप ऋषि की 21 पत्न
Swastik सथिया/ स्वस्तिक (卐 or 卍) का महत्व
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स्वस्तिक का महत्व या सथिया हिंदू धर्म का शुभ चिन्ह शुभ चिन्ह स्वस्तिक कहा से आया और इसका अन्य धर्मो के साथ हिंदू धर्म में कितना महत्व है| स्वस्तिक को कैसे बनाया जाता है? कोनसे तरफ और कोनसे रंग का स्वस्तिक शुभ होता है? हिदू धर्म के ग्रंथो में इसका क्या उल्लेख और महत्व होता है इसी बारे में बतया गया है| स्वस्तिक चिन्ह या सथिया स्वस्तिक ( 卐 or 卍 ) का अर्थ :- हिंदू धर्म के तीन शुभ चिन्ह ओउम् ( ॐ ) या ओंकार , त्रिशूल और स्वस्तिक ( 卐 or 卍 ) भी शामिल है| हिंदू ही नहीं अन्य धर्मो और प्राचीन सभ्याताओ में भी इसका वर्णन मिलता है| स्वस्तिक शब्द संस्कृत के तीन शब्दों सु + अस + क | जिसका अर्थ ' सु- अच्छा + अस्त- सत्ता या अस्तिव + क- कर्ता या करने वाला' है जिसका अर्थ है सबका कल्याण करने वाला| इसका प्रयोग किसी शुभ कार्य को शुरु करने से पहले किया जाता है जैसे गृहनिर्माण, यात्रा शुरु करते समय, पुत्रजन्म और सोलह सस्कारो मे भी इसका वर्णन है| ब्रह्माण्ड दो तरह की उर्जाओ शिव और शक्ति, प्रकाश और विमर्ष, पुरुष और प्रकृति से बना है| वैसे ही स्वस्तिक दो तरह से बनाये जाते है दाहि
Devi Arundhati and Vasistha story wife of sage Vasistha
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अरुंधती-वसिष्ठ तारा / वसिष्ठ की पत्नी अरुंधती सप्तऋषियों में से ऋषि वसिष्ठ की पत्नी थी, उन्हें सात ऋषियों के समान दर्जा दिया जाता है और उनके साथ पूजा की जाती है | वैदिक और पौराणिक साहित्य में उन्हें शुद्धता, वैवाहिक आनंद और पत्नी भक्ति का प्रतीक माना जाता है | संस्कृत और हिंदी की कविताओ में उनके चरित्र को बेदाग , प्रेरक और अनुकरण के योग्य बताया गया है | अरुंधती के जन्म का उल्लेख शिव पुराण और भागवत पुराण में मिलता है| शिव पुराण के अनुसार पिछले जन्म में उनका नाम संध्या था| ब्रह्मा ने संध्या और मन्मथा को अपनी मनसपुत्रियों के रूप में पैदा किया था | ब्रह्मा और प्रजापति जो उसके पिता और भाई थे उसकी सुन्दरता पर मोहित हो जाते है और वह भी उनकी तरफ आकर्षित हो जाती है जिससे उसको बाद में पछतावा हो जाता है| अपनी इस गलती के पश्चाताप के लिए वह चंद्रभागा पर्वत पर हजारो सालो तक तपस्या करती है| ब्रह्मा को उसपर दया आ जाती है और वो ऋषि वसिष्ठ को उसकी मदद के लिए भेजते है तब ऋषि एक ब्राह्मण के वेश में उसके पास जाकर उसको भगवान विष्णु की तपस्या करने की विधि बताते है| भगवान विष्णु उसकी तपस्या से प्रस