योगिनी एकादशी 2023 योगिनी एकादशी व्रत का महत्व और इसकी कथा

 

योगिनी एकादशी

हिंदू कलेंडर में ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहा जाता है| हिंदू कलेंडर में दो पक्षों (शुक्ल और कृष्ण) जो 15 दिन के होते है मिलकर एक महिना या माह बनाते है इस तरह एक माह में दो ग्यारहवी तिथि हो जाती है एक कृष्ण पक्ष की और एक शुक्ल पक्ष की| साल में 24 एकादशी होती है और उनके नाम अलग अलग है और उसी अनुसार इसके पूज्य देवता भी बदलते रहते है| इस दिन चंद्रमा हमे अपने पूर्ण स्वरूप से 3/4 घटा हुआ या बढ़ा हुआ दिखाई देता है| हिंदू धर्म में इस दिन व्रत या उपवास करने का बहुत अधिक महत्व है| इस दिन सात्विक भोजन खासकर फलाहार लिया जाता है और जागरण किया जाता है| व्रत करने से हमारे हमारे शरीर का पाचन तंत्र तो दुरस्त होता ही है साथ जैसे की उपवास का मतलब होता है ‘समीप बैठना हम अपने अपने आप को उस परमपिता के ज्यादा नजदीक पाते है| इस दिन किये हुए व्रत से हमारे द्वारा हुए जाने अनजाने पापो से हमे मुक्ति मिलती है|

 

योगिनी एकादशी

वैसे तो तभी एकादशियो का अपना अलग महत्व है लेकिन आज हम जिस एकादशी के बारे में बताने जा रहे है वो योगिनी एकादशी है इस दिन श्रीहरि भगवान की पूजा की जाती है| योगिनी एकादशी आषाढ़ माह (जून-जुलाई) की कृष्ण पक्ष की एकादशी को पडती है| इस दिन व्रत करने से 88000 ब्राह्मणों को भोजन खिलाने जितना पुण्य मिलता है|

 

योगिनी एकादशी 2023 तिथि

साल 2023 में योगिनी एकादशी बुधवार, 14 जून, 2023 को पड़ेगी|

योगिनी एकादशी व्रत खोलने का समय - 15 जून को  6:04AM से 8:32AM

योगिनी एकादशी तिथि आरंभ- 13 जून को 9:28AM से (क्योंकि एकादशी का व्रत दसवी तिथि से आरम्भ हो जाता है)

योगिनी एकदशी तिथि अंत- 14 जून को 8:48AM

 

योगिनी एकादशी भगवान विष्णु मंत्र (Lord Vishnu Mantra on Yogini Ekadashi)

 

ॐ नमोः नारायणाय॥

ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥

 

श्री विष्णु गायत्री मंत्र

ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।

तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥

 

विष्णु शान्ताकारं मंत्र

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।

लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥

 

मंगल श्री विष्णु मंत्र

मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

 

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योगिनी एकादशी का महत्व

इस व्रत का वर्णन महाभारत में युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण के बीच हुए एक वृतांत में भी मिलता है|

युधिष्ठिर ने पूछा : वासुदेव! आषाढ़ के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? कृपया उसका वर्णन कीजिये।

 

 भगवान श्रीकृष्ण बोले : नृपश्रेष्ठ! आषाढ़ (दक्षिण भारत के अनुसार ज्येष्ठ ) के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘योगिनी’ है। यह बड़े बडे पातकों का नाश करनेवाली है। संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है।

 

अलकापुरी के राजाधिराज कुबेर सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहनेवाले हैं। उनका ‘हेममाली’ नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की पत्नी का नाम ‘विशालाक्षी’ था। वह यक्ष कामपाश में आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था। एक दिन हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पत्नी के प्रेमपाश में खोया रह गया, अत: कुबेर के भवन में न जा सका। इधर कुबेर मन्दिर में बैठकर शिव का पूजन कर रहे थे। उन्होंने दोपहर तक फूल आने की प्रतीक्षा की। जब पूजा का समय व्यतीत हो गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से कहा : ‘यक्षों! दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है?’

 

यक्षों ने कहा: राजन्! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो घर में ही रमण कर रहा है। यह सुनकर कुबेर क्रोध से भर गये और तुरन्त ही हेममाली को बुलवाया। वह आकर कुबेर के सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर कुबेर बोले : ‘ओ पापी! अरे दुष्ट! तूने भगवान की अवहेलना की है, अत: कोढ़ से युक्त और अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा।’

 

कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे मृत्युलोक गिर गया। कोढ़ से सारा शरीर पीड़ित हो गया परन्तु शिव पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरणशक्ति लुप्त नहीं हुई। वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरुगिरि के शिखर पर गया। वहाँ पर मुनिवर मार्कण्डेयजी का उसे दर्शन हुआ। पापकर्मा यक्ष ने मुनि के चरणों में प्रणाम किया। मुनिवर मार्कण्डेय ने उसे भय से काँपते देख कहा : ‘तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया?’


 तब यक्ष ने अपना सारा वृतांत ऋषि को सुनाया और कहा मुनिश्रेष्ठ ! संतों का चित्त स्वभावत: परोपकार में लगा रहता है, यह जानकर मुझ अपराधी को कर्त्तव्य का उपदेश दीजिये।


मार्कण्डेयजी ने कहा: तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, इसलिए मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत का उपदेश करता हूँ । तुम आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करो । इस व्रत के पुण्य से तुम्हारा कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायेगा । 


भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन् ! मार्कण्डेयजी के उपदेश से उसने ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत किया, जिससे उसके शरीर को कोढ़ दूर हो गया । उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करने पर वह पूर्ण सुखी हो गया ।


 नृपश्रेष्ठ ! यह ‘योगिनी’ का व्रत ऐसा पुण्यशाली है कि अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है, वही फल ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करनेवाले मनुष्य को मिलता है । ‘योगिनी’ महान पापों को शान्त करनेवाली और महान पुण्य फल देनेवाली है । इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है ।

 

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