सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन हिंदी में स्वस्ते ना इन्द्रो का हिंदी अनुवाद Swastivachan Mantra
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संपूर्ण स्वस्ते ना इन्द्रो मंत्र स्वस्तिवाचन
स्वस्ति वाचन (मंगल पाठ) शांति पाठ हिंदी अनुवाद सहित :-
हिंदू धर्म में प्राचीन परंपरा रही है की जब कभी भी हम कोई
शुभ कार्य आरम्भ करते है तो उसके सफल होने के लिए भगवान से मंगलकामना करते है कि
वो कार्य सिद्ध हो| हिंदू धर्म के जितने भी
वेदों में ऋचाये या मंत्र है उनको सही से बोलने से दिव्य शक्ति प्राप्त होती है और
मन शांत होता है| किसी भी शुभ कार्य को
प्रारम्भ करते, विवाह, पुत्रजन्म, मकान की नीव
स्थापना और सनातन धर्म के षोड्स सस्कारों को करते समय स्वस्तिवाचन किया जाता है| स्वस्तिवाचन का दैनिक नित्य पूजा कर्म मे भी पाठ कर सकते
हैं| स्वस्तिवाचन जीवन में नेगेटिव ऊर्जा को दूर कर
सकारात्मकता की ओर ले जाता है| जिस प्रकार स्वास्तिक
सभी प्रकार के वास्तु दोष समाप्त कर देता है, वैसे ही स्वस्ति वाचन से
सभी प्रकार के पूजन दोष समाप्त हो जाते हैं।
हिंदी अनुवाद की जरूरत क्यों है?
मानव जीवन को बेहतर बनाने के ऋषियों ने जो वेदों, ग्रंथो, उपनिषदों, पुराणों की ऋचाओ, मंत्रो की रचना की और उसी आधार पर हिंदू
धर्म के व्रत, प्रथाएं और त्यौहार मनाये वो विज्ञान की दृष्टी से बिल्कुल सही है
लेकिन आजकल हम उन प्रथाओ को तो मानते है और बहुत धूमधाम से वे त्यौहार भी मानते है
लेकिन उसके असली मतलब को भूलते जा रहे है| हम अपने घर में पंडितो को मंत्रोपचार के
लिए बुला तो लेते है लेकिन ना कभी उनसे इसका मतलब पूछते ना जानने की कोशिश करते इस
तरह से ये श्लोक और मंत्र बिना मतलब जाने अन्धविश्वास जैसे हो गये है| इस तरह बिना
मतलब को जाने ये हमारे लिए कोई दूसरी भाषा के जैसा हो गया जिसे हम सुन तो लेते है
पर समझ नही पाते| इसी वजह से इनका हिंदी
अनुवाद इतना जरूरी हो गया ताकि हम उसको समझ सके और ऋषियो द्वारा दिए मंत्र का सही
फायदा ले पाए|
स्वस्ति वाचन के नियम-
1. स्वस्ति वाचन किसी भी पूजा के प्रारंभ में किया जाना चाहिए।
2. स्वस्ति वाचन के पश्चात सभी दसों दिशाओं में अभिमंत्रित जल
या पूजा में प्रयुक्त जल के छीटें
लगाने चाहिए।
3. नए घर मे प्रवेश के समय भी ऐसा करना मंगलकारी होता है।
4. विवाह के विधिविधान में भी स्वस्ति वाचन का महत्व है।
स्वस्तिवाचन विधि :- यजमान हाथ में पुष्प लेकर गणेश जी महाराज और
माँ अम्बिका का ध्यान करें करते हुए निम्न मन्त्रों का पाठ-उच्चारण करें।
स्वस्तिवाचन मंत्र :-
आ नो
भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नोयथा
सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥
अर्थ - हमारे पास चारों ओर से ऐंसे कल्याणकारी विचार आते
रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से
बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों। प्रगति को न रोकने
वाले और सदैव रक्षा में तत्पर देवता प्रतिदिन हमारी वृद्धि के लिए तत्पर रहें।
देवानां
भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम्।
देवानां
सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्र तिरन्तु जीवसे ॥
अर्थ - यजमान की इच्छा रखनेवाले देवताओं की कल्याणकारिणी
श्रेष्ठ बुद्धि सदा हमारे सम्मुख रहे, देवताओं का दान हमें प्राप्त हो, हम देवताओं की मित्रता
प्राप्त करें, देवता हमारी आयु
को जीने के निमित्त बढ़ायें।
तान्
पूर्वयानिविदाहूमहे वयंभगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्।
अर्यमणंवरुणंसोममश्विना
सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्।।
अर्थ - हम वेदरुप सनातन वाणी के द्वारा अच्युतरुप भग, मित्र, अदिति, प्रजापति, अर्यमण, वरुण, चन्द्रमा और
अश्विनीकुमारों का आवाहन करते हैं। ऐश्वर्यमयी सरस्वती महावाणी हमें सब प्रकार का
सुख प्रदान करें।
तन्नो वातो
मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत् पिता द्यौः।
तद्
ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् ॥
अर्थ - वायुदेवता हमें सुखकारी औषधियाँ प्राप्त करायें।
माता पृथ्वी और पिता स्वर्ग भी हमें सुखकारी औषधियाँ प्रदान करें। सोम का अभिषव
करने वाले सुखदाता ग्रावा उस औषधरुप अदृष्ट को प्रकट करें। हे अश्विनी-कुमारो! आप
दोनों सबके आधार हैं, हमारी प्रार्थना
सुनिये।
तमीशानं
जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम्।
पूषा नो
यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥
अर्थ - हम स्थावर-जंगम के स्वामी, बुद्धि को सन्तोष
देनेवाले रुद्रदेवता का रक्षा के निमित्त आवाहन करते हैं। वैदिक ज्ञान एवं धन की
रक्षा करने वाले, पुत्र आदि के
पालक, अविनाशी
पुष्टि-कर्ता देवता हमारी वृद्धि और कल्याण के निमित्त हों।
स्वस्ति न
इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति
नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
अर्थ - महती कीर्ति वाले ऐश्वर्यशाली इन्द्र हमारा कल्याण
करें, जिसको संसार का
विज्ञान और जिसका सब पदार्थों में स्मरण है, सबके पोषणकर्ता वे पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें। जिनकी
चक्रधारा के समान गति को कोई रोक नहीं सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। वेदवाणी के स्वामी बृहस्पति
हमारा कल्याण करें।
पृषदश्वा
मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः।
अग्निजिह्वा
मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्निह ॥
अर्थ - चितकबरे वर्ण के घोड़ों वाले, अदिति माता से उत्पन्न, सबका कल्याण करने वाले, यज्ञआलाओं में जाने वाले, अग्निरुपी जिह्वा वाले, सर्वज्ञ, सूर्यरुप नेत्र वाले
मरुद्गण और विश्वेदेव देवता हविरुप अन्न को ग्रहण करने के लिये हमारे इस यज्ञ में
आयें।
भद्रं
कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम
देवहितं यदायुः ॥
अर्थ - हे यजमान के रक्षक देवताओं! हम दृढ अंगों वाले शरीर
से पुत्र आदि के साथ मिलकर आपकी स्तुति करते हुए कानों से कल्याण की बातें सुनें, नेत्रों से कल्याणमयी
वस्तुओं को देखें, देवताओं की
उपासना-योग्य आयु को प्राप्त करें।
शतमिन्नु
शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम।
पुत्रासो
यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥
अर्थ - हे देवताओं! आप सौ वर्ष की आयु-पर्यन्त हमारे समीप
रहें, जिस आयु में
हमारे शरीर को जरावस्था प्राप्त हो, जिस आयु में हमारे पुत्र पिता अर्थात् पुत्रवान् बन जाएँ, हमारी उस गमनशील आयु को
आपलोग बीच में खण्डित न होने दें।
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता
स पिता स पुत्रः।
विश्वेदेवा
अदितिः पंचजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम॥
अर्थ - अखण्डित पराशक्ति स्वर्ग है, वही अन्तरिक्ष-रुप है, वही पराशक्ति माता-पिता
और पुत्र भी है। समस्त देवता पराशक्ति के ही स्वरुप हैं, अन्त्यज सहित चारों
वर्णों के सभी मनुष्य पराशक्तिमय हैं, जो उत्पन्न हो चुका है और जो उत्पन्न होगा, सब पराशक्ति के ही स्वरुप
हैं।
ॐ द्यौ:
शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय:
शान्ति:।
वनस्पतय:
शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ
शान्ति:,
शान्तिरेव शान्ति:, सा
मा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति:
शान्ति: शान्ति:॥
अर्थ - द्युलोक शान्तिदायक हों, अन्तरिक्ष लोक शान्तिदायक
हों, पृथ्वीलोक
शान्तिदायक हों। जल, औषधियाँ और
वनस्पतियाँ शान्तिदायक हों। सभी देवता, सृष्टि की सभी शक्तियाँ शान्तिदायक हों। ब्रह्म अर्थात महान
परमेश्वर हमें शान्ति प्रदान करने वाले हों। उनका दिया हुआ ज्ञान, वेद शान्ति देने वाले
हों। सम्पूर्ण चराचर जगत शान्ति पूर्ण हों अर्थात सब जगह शान्ति ही शान्ति हो। ऐसी
शान्ति मुझे प्राप्त हो और वह सदा बढ़ती ही रहे। अभिप्राय यह है कि सृष्टि का
कण-कण हमें शान्ति प्रदान करने वाला हो। समस्त पर्यावरण ही सुखद व शान्तिप्रद हो।
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