Sage Prashar ऋषि पराशर, ज्योतिष ग्रन्थ, पराशर मंदिर और झील मंडी (हिमाचल)

 

Prashar Temple


महर्षि पराशर 

ऋषि मैत्रये को विष्णु के अवतारों और सृष्टी की रचना के बारे में बताने वाले महर्षि पराशर को विष्णु पुराण का वक्ता माना गया है| ऋषि पराशर (मृतको को जीवित करने वाला) महर्षि वसिष्ठ के पोते और ऋषि शक्ति के पुत्र थे| पुराणों के रचयिता ऋषि वेदव्यास इनके पुत्र है|

वेदों के अनुसार ब्रह्मा के मानसपुत्र वशिष्ठ (सप्तऋषियों में से एक) जिनको शक्ति नाम का पुत्र अरुंधती से हुआ था| ऋषि शक्ति और अद्यश्यन्ति से ऋषि पराशर हुए और मत्स्यगंधा (शांतनु की पत्नी सत्यवती) जिसको पराशर की पुत्री बताया गया है से वेदव्यास जी जिन्होंने भारत के महान ग्रन्थ महाभारत लिखा पैदा हुए थे|

 

परिचय :-

एक बार शक्ति एकायन मार्ग द्वारा पूर्व दिशा में जा रहे थे दूसरी और से राजा कल्माषपाद आ रहे थे रास्ता इतना संकरा था कि कोई एक ही जा सकता था| राजा ने घमंड में आकर ऋषि को रास्ता नही दिया बल्कि उनको मारना शुरु कर दिया राजा का ऐसे राक्षसों जैसे बर्ताव देखकर शक्ति ने उन्हें राक्षस बन जाने का श्राप दे दिया| श्राप के तुरंत प्रभाव से राजा राक्षस बन जाता है और सबसे पहले शक्ति को ही खा जाता है और ऋषि शक्ति की मृत्यु हो जाती है| ऋषि विश्वामित्र और वशिष्ठ की शत्रुता की वजह से उनके पुत्र शक्ति और उनके अन्य पुत्रो की राक्षस बने कल्माषपाद से हत्या हो जाती है जब ऋषि वसिष्ठ को अपने 100 पुत्रो की मृत्यु का पता चलता है तो वो आत्महत्या करने के विचार से मेरु पर्वत से कूद गये लेकिन रुई पर जाकर गिरे, जंगल की आग घुसे लेकिन वहा से सुरक्षित निकल गए, गहरे समुद्र में जान देने की कोशिश तो किनारे पर आ गये, वो अपने हाथ पैर रस्सी से बांध कर एक नदी में कूद गये तो नदी ने उनको मारने से मना कर दिया और उनकी रस्सियों को खोलकर किनारे पर ला फेका जिससे उस नदी का नाम विपासा (मुक्त करने वाली) जिसे अब व्यास नदी कहते है पड़ा, फिर उन्होंने अपने आपने आप को ऐसी नदी में फ़ेक दिया जो मगरमच्छों से भरी थी उस नदी ने भी खुद को 100 दिशाओ में अलग अलग होकर बहना शुरु कर दिया जिसे शताद्रू (100 दिशाओ में बहने वाली) कहने लगे जिसे अब सतलुज कहा जाता है| इस तरह बहुत तरह कोशिश करने पर जब ऋषि वापस आश्रम में आये तो वहाँ उस राक्षस को देखा जिसने उनके पुत्रो की हत्या की थी तब ऋषि ने दयावश उस राक्षस को श्राप में मुक्त किया| ऐसा माना जाता है की एक दिन ऋषि वशिष्ठ को वेदों के उच्चारण की आवाज सुनाई दी तो उन्होंने पाया की ये आवाज उनकी पुत्रवधू के पेट से आ रही है जो गर्भवती थी| जब उससे एक पुत्र पैदा हुआ तो उसको अपने पुत्र की तरह पाला और जिससे उनके मन से आत्महत्या का विचार खत्म हो गया इस तरह से उनका नाम पराशर अथवा मृतको को जीवित करने वाला पड़ा|

राक्षस-सत्र यज्ञ

 विष्णु पुराण के पहले अध्याय में पराशर अपने शिष्य ऋषि मैत्रये को बताते है कि जब उनको अपने पिता की मृत्यु के बारे में पता चला तो उन्होंने सभी राक्षसों के संहार के लिए राक्षस यज्ञ आयोजित किया जिससे सभी राक्षस अपने आप खीचे आकर उस यज्ञ में जलकर भस्म होने लगे तब ऋषि वसिष्ठ ने उनको शांत होने को कहा और बोले की इतना गुस्सा ठीक नही है तुम्हारे पिता के भाग्य में ऐसे होना निश्चित था ऐसा सुनकर पराशर ऋषि शांत हो जाते है उसी समय ऋषि पुल्तस्य जो ब्रह्मा के मानसपुत्र थे वो भी आते है और उनके ऐसे त्याग को देखकर उनको वरदान देते है की वो पुराण संहिता के वक्ता होंगे|

 एक बार वो अपनी पत्नी को आश्रम में छोडकर तप करने वन में गये थे तब उन्होंने वन में रहते हुए अपनी शक्तियों के प्रभाव से अपनी पत्नी के लिए वीर्यशक्ति भेजी थी जिसे रस्ते में एक मछली ने खा लिया और वह गर्भवती हो गयी जिससे मत्स्यगंधा (मछली जैसी गंध वाली) नाम की पुत्री का जन्म हुआ| तप पूरा होने पर जब ऋषि उसी नदी से वापस जा रहे थे तो मत्स्यगंधा को देखकर उसपर मोहित हो गये| मत्स्यगंधा की तीन शर्ते थी कि उनको कोई ना देखे, वो फिर से अपना कुवारीपन प्राप्त कर सके और उनकी मछली जैसी बदबू खुशबू में बदल जाए को अपनी दिव्य शक्तियों से पूरी करने के बाद ऋषि व्यास जी (विष्णु के 24 अवतारों में 17वे) का जन्म हुआ जिसके बारे में किसी को पता नही चला की ये किसके पुत्र है| व्यास जी रंग के सावले थे जिस कारण उन्हें कृष्ण कहा गया और यमुना नदी के द्वीप पर पैदा होने के कारण उनको द्वैपायन भी कहा गया| कालांतर में वेदों का भाष्य करने की वजहसे वे वेदव्यास कहलाये| वही मत्स्यगंधा जिससे मछली जैसे बदबू आती थी अब उससे बहुत अच्छी खुशबू आने लगी जो दूर से सूंघी जा सकती थी इससे उनका नाम सत्यवती या योजनगंधा या कस्तुरीगंधा हुआ और उनकी शादी कुरु वंश के महाराज शांतनु से हुई| महाराज शांतनु की दो पत्निया गंगा से भीष्म और सत्यवती से दो पुत्र विचित्रवीर्य और चित्रांगद का जन्म हुआ| विचित्रवीर्य की कम उम्र में बीमारी की वजह से मृत्यु हो जाने पर ऋषि व्यास की नियोग शक्ति से ही अम्बिका , अम्बालिका को पांडू और ध्रितराष्ट्र तथा उनकी दासी को विदुर पैदा हुए|   

जब भीष्म शरशैया पर थे तब ऋषि पराशर भी उनसे मिलने गए थे| वे जनमेजय के सर्पयज्ञ में भी उपस्तिथ थे|

एक बार ऋषि पराशर राजा जनक के यहाँ गये थे और उनको अध्यात्मिक चीजों पर ज्ञान दिया था जिसका वर्णन शांति पर्व में है|

 

वेदों में पराशर का वर्णन

वेदों को ब्रह्मा के मुख से अवतरित माना गया है| शुरुआत में वेद एक ही थे जिसको व्यास ने अलग अलग 4 हिस्सों में बाटा| उन्होंने पैला को ऋग्वेद, जैमिनी को सामवेद, वैशाम्पयाना को यजुर्वेद और सुमान्तु को अथर्वेद पढने को कहा| जिसमे पैला ने ऋग्वेद की दो संहिता बनाई जो उन्होंने इन्द्रप्रमति और बाष्कल को दी| बाष्कल ने इसको आगे चार हिस्सों में बांटकर अपने शिष्यों याज्ञवल्क्य, पराशर, बोध्य और अग्निमाढक को दिया| इस तरह ऋग्वेद की बहुत सी ऋचाये पराशर की है| बाष्कल पराशर के आचार्य है और कई जगह याज्ञवल्क्य को भी पराशर का आचार्य बताया गया है|

 

ऋषि पराशर की रचनाए

पराशर ऋषि ने अनेक ग्रंथो की रचना की जिसमें से ज्योतिषी के ऊपर लिखे गये ग्रन्थ बहुत ही महत्वपूर्ण है| प्राचीन और वर्तमान का ज्योतिषी शास्त्र पराशर ऋषि द्वारा बताए गये नियमों पर ही आधारित है| ज्योतिषी के ऊपर ऋषि पराशर ने बृहत्पराशर होरा शास्त्र, लधुपराशरी ( ज्योतिषी ) लिखा| ऋग्वेद में भी पराशर की कई ऋचाए है| विष्णुपुराण, पराशर स्मृति, विदेहराज जनक को पराशर गीता जो महाभारत के शांति पर्व का एक भाग है का ज्ञान दिया था|

 ज्योतिष के ऊपर ग्रंथो के अलावा इनकी अन्य रचनाए भी है जैसे बृहत्पराशरीय धर्मसंहिता, पराशरीय धर्मसंहिता ( स्मृति ), पराशर संहिता ( वैधक ), पराशरीय पुराणं ( माध्वाचार्य ने उल्लेख किया है ), पराशरौदितं नीतिशास्त्रम (चाणक्य ने उल्लेख किया है), पराशरौदितं वस्तुशास्त्रम (विश्वकर्मा ने उल्लेख किया है) |

ऋषि पराशर का वैदिक ज्योतिष में योगदान 

वैदिक ज्योतिष वेदों के ज्ञान पर आधारित है ज्योतिष को वेदों की आँख कहा गया है| वैदिक ज्योतिष को आगे बढ़ाने में 18 ऋषियों का बहुत योगदान है ये ऋषि इस प्रकार है –

सूर्य, पितामहवशिष्ठ, व्यास, अत्री, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु,  अंगिरा,  पुलस्य, लोमश, चवन, यवन, भृगु और शौनक| वर्तमान ज्योतिषी इनकी लिखी बृहत्पराशर होरा शास्त्र को आधार बनाकर भविष्यवाणी करते है| इनके ग्रन्थ में ग्रह नक्षत्रो के गुण, राजयोग, मारक योग, दरिद्र योग, कालचक्र, अन्तर्दशा, दशाचक्र आदि का वर्णन मिलता है|




Prashar Lake View


ऋषि पराशर मंदिर और झील

पराशर झील एक प्राकृतिक झील है जो मंडी, हिमाचल प्रदेश में है| कहा जाता है कि यहाँ पर ऋषि पराशर ने तपस्या की थी| प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ साथ इस झील के बीच में एक भूखंड भी है जो आश्चर्य का विषय है| यह भूखंड अपने आप झील में इधर उधर तैरता रहता है जो इसे और ज्यादा दिलचस्प बनाता है| इसी झील के एक मे एक मंदिर भी है जिसे 14वी शताब्दी में मंडी रियासत के राजा बाणसेन ने बनवाया था|   





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