Maha Shivaratri ka mhtav महाशिवत्रि का उपवास कथा और महत्व

महाशिवरात्रि 

वैसे तो शिवरात्रि साल में 12 होती है लेकिन हिंदू त्यौहार शिवरात्रि साल में दो ( सावन और फाल्गुन/माघ माह ) बार मनाया जाता है जिसमे फाल्गुन/माघ चतुर्दशी माह वाली शिवरात्रि को ज्यादा शुभ महाशिवरात्रि कहते है| हिंदू त्योहारों में ये दिवाली की ही तरह रात को मनाया जाने वाला त्यौहार है| पुरानी कथाओ के अनुसार इस दिन सृष्टी का आरम्भ भगवान शिव के अग्निलिंग के उदय से हुआ था और इसी दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था अर्थात प्रकृति और पुरुष का मानव की भलाई के लिए एक होना | माता सती की मृत्यु के शोक में इसी रात भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया था इसीलिए 12 शिवरात्रियो में इस रात को महाशिवरात्रि कहा गया है| इस रात को लोग उपवास , जागरण करते है , शिव चालीसा की स्तुति करते है | उप का मतलब है पास और वास का मतलब है जाना या रहना अर्थात भगवान के पास जाना उसका चिन्तन करना |


शिवरात्रि का महत्व :-

महाशिवरात्रि का वर्णन बहुत से पुराणों जैसे स्कन्द पुराण,लिंग पुराण और पद्मा पुराण में मिलता है| समुंदर मंथन के समय अमृत के साथ हालहल विष भी निकला था जो पुरे ब्रह्मांड को समाप्त कर सकता था जिसको पीने का साहस किसी ने नही दिखाया तब भगवान शिव ने उस विष को पिया और उसको अपने कंठ में रख लिया जिससे उनका कंठ नीला हो गया तभी से उन्हें नीलकंठ कहते है इस विष के उपचार के लिए चिकित्सको ने उन्हें रात भर जागने की सलाह दी तब सभी देवताओ ने उनको जगाये रखने के लिए अलग अलग नृत्य किये और संगीत बजाया उनकी भक्ति से भगवान शिव खुश उन्होंने देवताओ को आशीर्वाद दिया | शिवरात्रि उस घटना का उत्सव है जब भगवान शिव ने धरती को बचाया और उसी दिनसे शिवरात्रि का उपवास करते है|

भगवान शिव से ही योग परंपरा की शुरुआत मानी जाती है उनको ही आदि (प्रथम) गुरु माना जाता है| परंपरा के अनुसार इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जो मानव शरीर के लिए लाभकारी होती है यह भौतिक और अध्यात्मिक दोनों तरह से शुभ होती है| इस रात को जागरण की सलाह दी जाती है जिसमे नृत्य, संगीत सुनना नही तो सिर्फ खड़े रहकर या घूमकर फायदा लिया जा सकता है| विवाहित महिलाये अपने पति के सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती है वही अविवाहित महिलाये भगवान शिव जिन्हें आदर्श पति माना जाता है को पाने के लिए प्रार्थना करती है|    


भगवान शिव का तांडव नृत्य और शिव सती की कहानी  :-

सती शिव की पहली पत्नी थी उनकी दूसरी पत्नी पार्वती थी जो सती की मृत्यु के बाद उनका पुनर्जनम थी| सती प्रजापति दक्ष ( ब्रह्मा के मानसपुत्र ) की पुत्री थी| भगवत पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने दक्ष को महान देवी का ध्यान करने उन्हें अपनी पुत्री रूप में  पैदा होने की सलाह दी थी तब देवी मान जाती है लेकिन कहती है की अगर दक्ष ने उनके साथ कोई दुर्वयवहार लिया तो वह अपना शरीर त्याग देंगी | सती दक्ष की सबसे छोटी और प्रिय पुत्री थी वह अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध शिव से विवाह कर लेती है और अपने पति के साथ कैलाश पर्वत पर रहने लग जाती है | एक बार जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया तो सती और उसके शिव को आमंत्रित नही किया जब सती को इस बात का पता चला तो शिव के मना करने के बाद भी वो अपने पिता क घर चली गयी लेकिन वहाँ उसकी माँ प्रसूति क अलावा किसी ने उसका स्वागत नही किया और उसे और उसके पति को बुरा भला कहा| अपने पति ऐसे अपमान से आहत होकर उसने खुद को यज्ञ की अग्नि के अंदर कूदकर अपनी जान देदी| जब शिव को इस बारे में पता चला तो अपनी प्रिय पत्नी की वियोग तांडव नृत्य करने लगे उन्होंने दो क्रूर देवताओं – वीरभद्रा और भद्रकाली की रचना की जिन्होंने यज्ञ स्थल पर तबाही मचाई और सभी उपस्तिथ लोगों को मार दिया वीरभद्र ने राजा दक्ष का सर धड से अलग कर दिया| उस दिन के बाद शिव को सबको माफ़ करने वाला माना जाता है क्योंकि उन्होंने रजा दक्ष, सभी लोगों और उनके राज्य को फिरसे पुनर्जीवित कर दिया दक्ष का सर जो धड से अलग कर दिया गया था उसकी जगह बकरी का सर उनको लगाया गया | ऐसा माना जाता है जब शिवजी सती माता की लाश को गोद में लकर तांडव नृत्य कर रहे थे तब धरती अपना संतुलन खो देती है तब शिव को शांत करने क विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किये जो अलग अलग जगहों पर जाकर गिरे जिन्हें अब 51 शक्तिपीठो के नाम से जाना जाता है| इसके बाद शिव उदास होकर तपस्वी बन गये| सती ने मरने से पहले वादा किया था की वो ऐसे पिता से फिरसे पैदा होगी जो उसका सम्मान करेगा और उसका विवाह फिर से शिव के साथ करवायगा तब सती ने माता पार्वती के रूप में राजा हिमवत और माँ मेना के यहाँ पुनर्जन्म लिया और घोर तपस्या करने के बाद उनके पिता ने उनकी शादी ख़ुशी से भगवान शिव के साथ करवाई |

भगवान शिव का तांडव नृत्य :-

भारतीय हिंदू धर्म में भगवान शिव को नृत्य , कला ,योग और संगीत का प्रथम आचार्य  माना जाता है| भारतीय नृत्य फिर चाहे कोई भी नृत्य हो जैसे कथक, भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, मणिपुरी, ओडिसी इन सब के आराध्य देव भगवान शिव के नर्तक रूप नटराज को माना गया है| नटराज शिव की प्रसिद्ध मूर्ति की चार भुजाए है और उनके चारो और अग्नि के घेरे है| एक पाँव में उन्होंने एक बोने ( अकस्मा ) को दबा रखा है तो दूसरा पाँव नृत्य मुद्रा में उपर को उठा हुआ है उन्होंने अपने पहले दाहिने हाथ जो ऊपर की ओर है में डमरू पकड़ा है जो सृजन का प्रतीक है| ऊपर की ओर उठे हुए दुसरे हाथ में अग्नि है जो विनाश का प्रतीक है| इसका अर्थ यह है की शिव एक हाथ से सर्जन करते है और दुसरे हाथ से प्रलय करते हैउनका दूसरा दाहिना हाथ आशीष की मुद्रा में उठा हुआ है जो हमारी बुराइयों से रक्षा करता है| उनका दूसरा बाया हाथ उठे हुए पैर को इंगित करता है जो मोक्ष के मार्ग को प्राप्त करने का सुझाव देता है| उनके पैर के नीचे कुचला हुआ बोना अज्ञान का प्रतीक है | उनके लहराते हुए साप जैसे बाल कुंडलिनी शक्ति के घोतक है|

ज्योतिष में शिवरात्रि का महत्व :-

ज्योतिषी में भगवान शिव को पुनर्निर्माण और बदलाव का प्रतीक माना जाता है जो संहार और सीजन शक्ति को दर्शाते है| उन्होंने चन्द्रमा को अपने सिर पर धारण कर रखा जो उनकी बदलते मनोभावों पर अच्छी तरह से पकड़ को दर्शाती है| शिव और शनि को एक साथ भी जोड़ा गया है क्योंकि शनि भी बदलाव लेकर आने वाला ग्रह है और इसका प्रभाव शिवरात्रि के समय बहुत अधिक होता है|

महाशिवरात्रि का महत्व और भी अधिक है क्योंकि इस समय मंगल, गुरु और शनि ग्रह का प्रभाव किसी भी जातक की कुंडली में सबसे ज्यादा दिखता है| इस त्यौहार के दौरान मंगल के प्रभाव से हमारे अन्दर उर्जा का संचार होता है जिससे हम जिंदगी में आने वाली परेशानियों का सामना कर सके| गुरु के प्रभाव की वजहसे हमारे अंदर ज्ञान और समझ का विस्तार होता है | चन्द्रमा जो हमारे मन का कारक होता है इस समय हम उसके प्रभाव से हम खुद के बारे में जानने के लिए ज्यादा उत्सुक होते है इस वजहसे शनि ग्रह हमारे जीवन में कई तरह के बदलाव लेकर आते है जिससे हम अपनी परेशानियों से लड़कर अपने जीवन को एक नई दिशा देते हुए आगे बढ़ सकते है| इस शिव का ध्यान करने से खुद संहार और सर्जन के कारक है हम उनका आशीर्वाद पा सकते और आगे बढ़ सकते है|

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