Sage Maitreya ऋषि मैत्रेय दुर्योधन को दिया श्राप


 ऋषि मैत्रेय :-

18 महापुराणों में से विष्णु पुराण एक बहुत ही महत्वपुरण हिंदू पुराण है| इसे हिंदू पुराणों में पुराणरत्न कहा गया है| इसके वक्ता ऋषि पराशर है जो ऋषि वसिष्ठ के पोते थे वहीं इसके श्रोता ऋषि मैत्रेय है| मैत्रेय ऋषि के आग्रह करने पर ऋषि पराशर ने  विष्णु पुराण सुनाया था|

परिचय

ऋषि  मैत्रेय महाभारत भारत कालीन एक महान ऋषि थे| इनकी माता का नाम मित्रा था जिससे इनका नाम मैत्रेय पड़ा और पिता का नाम कुषरव था जिसकी वजहसे मैत्रेय जी को कौषारन भी कहा जाता है| इनके गुरु ऋषि पराशर जी ने इनको समस्त वेद, वेदांग और सकल धर्मशास्त्रों का अध्यनन करवाया था| इन्होने ऋषि पराशर से पूछा कि यह जगत किस प्रकार उत्पन्न हुआ और आगे भी कैसे होगा? इसके उत्पन्न होने का क्या कारण रहा और यह सब किससे उत्पन हुआ और आगे किसमे जाकर लीन हो जायगा? अर्थात वो ऋषि से ब्रह्माण्ड की उत्पति के बारे में पूछना चाहते थे| तब ऋषि पराशर उनको पुराणसंहिता सुनाते है जिसमे उन्होंने बताया की यह जगत विष्णु से उत्पन्न हुआ है, उन्ही में स्थित है, वे ही इसकी स्थिति और लय के कर्ता है तथा यह जगत भी वे ही है|

महाभारत में वर्णन

ऋषि मैत्रेय महाभारत कालीन एक महान ऋषि थे| उनका युधिस्ठिर के राजसूय यज्ञ में शामिल होने का वर्णन मिलता है| जब युधिस्ठिर ने इन्द्रप्रस्थ की स्थापना की थी तो समस्त कुरु वंश के लोगों को आमंत्रित किया था उनके महल की भव्यता देखकर दुर्योधन को जलन होती और वह ध्रुत क्रीडा से उसका राज्य हथिया लेता है द्रौपदी का चीरहरण करके अपमान भी करता है तब भीम भरी सभा में प्रण लेते है कि उसकी जंघा को तोड़कर वह द्रौपदी के इस अपमान का बदला लेगा और सभी पांडव शर्त के अनुसार 12 वर्ष वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास में चले जाते है जब यह समय पूरा होने को होता है तो दुर्योधन को चिंता होने लगती है कि पांड्वो के वापस आने पर उसको फिरसे राज्य छोड़ना पड़ेगा| उसकी इस मनस्थिति का जब ऋषि मैत्रिये को पता चलता है तो वो उससे मिलने राजदरबार में आते है| ध्रितराष्ट्र, विदुर, भीष्म पितामह सभी उसका आदर से स्वागत करते है और उनको बैठाते है| जब ऋषि पांडवो के पराकर्म का उल्लेख करते हुए सबको बताते है कैसे उन्होंने वनवास में रहते बहुत से राक्षसों का वध किया तो दुर्योधन उनकी बातो की तरफ ध्यान नही देते हुए अपनी जंघा को पीटता है और पैरों से जमीन पर निशान बनाता है| उसके इस व्यवहार को देखकर ऋषि को गुस्सा आ जाता है और वह दुर्योधन को श्राप देते है कि जिस तरह तुमनें मेरी बातो पर ध्यान नही देकर मेरा अपमान किया है और अपनी जंघा को पीटा है इसी जंघा पर प्रहार होने से तुम्हारी मृत्यु होगी| ऋषि के ऐसे श्राप को सुनकर जब ध्रितराष्ट्र उनसे विनति करते है तो वो कहते है अगर इन्होने अपना राज्य पांड्वो को नही सौपा तो अवश्य ही ऐसा होगा| दुर्योधन की ऐसा करने की कोई इच्छा नही थी और अंत में युद्ध होता है और भीम की गदा से जंघा पर प्रहार किये जाने से दुर्योधन की मृत्यु होती है|  

 गदा नियम के अनुसार कमर से नीचे प्रहार करना अनुचित होता है लेकिन भीम के लिए प्रण और ऋषि मैत्रिय के दिए श्राप की वजहसे उसकी मृत्यु होती है| इस तरह से कहा जा सकता है आदमी जैसा कर्म करता है उसका फल उसको किसी ना किसी रूप में भोगना पड़ता है| दुर्योधन अगर द्रौपदी का अपमान ना करता और ये सब हो जाने पर बाद में भी अगर राज्य पांड्वो को दे देता तो शायद ऐसा ना होता लेकिन उसने ऋषि की बात को नजरंदाज़ किया और मृत्यु को प्राप्त हुआ| अगर हम चाहे तो उसमे समय से पहले बदलाव करके उससे बच सकते है जो ध्यान नही देते उनको फिर परिणाम भुगतने पड़ते है|

 एक अन्य जगह भी ऋषि मैत्रेय का वृतांत सुनने को आता है जब वो हरिद्वार में थे तब उनसे मिलने के लिए विदुर जी आये थे| तब विदुर को उन्होंने आत्म ज्ञान का बोध कराया था जिसका वर्णन भागवतपुराण के 20वे अध्याय में मिलता है|


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